Devshayani Ekadashi 2024 : इस दिन से निद्रा में जा रहे हैं श्री हरि, चार माह नहीं होंगे शुभ कार्य
बलिया : आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी से शुरू होकर चतुर्मास कार्तिक शुक्ल पक्ष की एकादशी के दिन पूर्ण होते हैं। पुराणों के अनुसार आषाढ शुक्ल एकादशी से विष्णु भगवान क्षीर सागर की अनंत शैय्या पर योग निद्रा के लिए चले जाते हैं, इसलिए चतुर मास के प्रारम्भ की एकादशी को देव शयनी एकादशी कहते हैं।
जिले के थम्हनपुरा निवासी ज्योतिषाचार्य डॉ. अखिलेश कुमार उपाध्याय के मुताबिक देवउठनी एकादशी या प्रबोधिनी एकादशी कहते हैं, क्योंकि इन 4 महीनो में कोई धार्मिक व मांगलिक कार्य नहीं होता है।धर्म शास्त्र के अनुसर सृष्टि के संचालन का कार्य भगवान विष्णु के हाथ में रहता है, लेकिन उनके शयन काल में चले जाने के कारण सृष्टि के संचालन का कार्यभार भगवान शिव के पास आ जाता है।
श्रावण माह पूरा भगवान शिव को समर्पित रहता है। शिव मंदिरों में महामृत्युंजय मंत्र का जाप रुद्राभिषेक आदि शुभ कार्य सम्पन्न किये जाते हैं। इसके बाद भाद्रपद महीने में 10 दिनों तक भगवान श्री गणेश का जन्मोत्सव मनाया जाता है। इसके बाद आश्विन माह में देवी दुर्गा की आराधना शारदीय नवरात्र में की जाती है।
ज्योतिषाचार्य डॉ. अखिलेश कुमार उपाध्याय बताते है कि चातुर्मास का महत्व केवल धार्मिक ही नहीं, वैज्ञानिक दृष्टिकोण से अहम है। चार माह खान पान में सावधानियां बरतने की होती हैं। ये 4 महीने बरसात के होते हैं। इसलिए हवा में काफी नमी बढ़ जाती है, जिसके कारण बैक्टीरिया जीव जंतु आदि बड़ी संख्या में पनपते हैं। इसलिए इस 4 महीने में पत्तेदार सब्जी नहीं खाना चाहिए।
इस दौरान पाचन शक्ति कमजोर हो जाती है। इसलिए संतुलित और हल्का व सुपाच्य भोजन करना चाहिए। देव सैनी एकादशी 17 जुलाई बुधवार को है। इस दिन से भगवान श्री हरि विष्णु क्षीर सागर में शयन करते हैं। इसके बाद 4 मास शुभ कार्य वर्जित रहेगा। 17 जुलाई से 16 नवंबर तक विवाह शुभ कार्य वर्जित रहेगा। 17 नवंबर से विवाह शुभ कार्य प्रारंभ हो जायेगा।
पंडित अखिलेश उपाध्याय
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