भारतीय धर्म ग्रंथों को जानने के लिए संस्कृत का ज्ञान आवश्यक : राजकुमार
बलिया :.उत्तर प्रदेश संस्कृत संस्थान द्वारा निदेशक विनय श्रीवास्तव के मार्गदर्शन में संचालित ऑनलाइन प्रशिक्षण पाठ्यक्रम निर्माण योजना के अंतर्गत सरल संस्कृत संभाषण कक्षा में प्रेरणा सत्र का शुभारंभ किया गया। इस कार्यक्रम का प्रारंभ मंगलाचरण द्वारा किया गया।
मंगलाचरण की प्रस्तुति रिपु दमन दीक्षित ने किया। मीटिंग संचालन पंकज शर्मा एवं धनंजय मिश्रा ने किया। कार्यक्रम में संस्थान की प्रशिक्षिका निधि मिश्रा भी उपस्थित रही।सरस्वती वंदना रंजना द्वारा किया गया। संस्थान गीतिका यशिका राजपूत और राधा मोहन राजपूत द्वारा प्रस्तुत किया गया। अतिथि परिचय, स्वागत भाषण समन्वयिका राधा महोदया द्वारा किया गया।
इस कार्यक्रम में शिक्षार्थी शशि बाला और आराध्या ने संस्कृत के प्रति अपना अनुभव व्यक्त किया। संस्कृत गीत धनंजय मिश्रा द्वारा किया गया। कार्यक्रम में मुख्यवक्ता के रूप में राजकुमार जी उपस्थित रहे, जिनके द्वारा कार्यक्रम में उपस्थित सभी शिक्षार्थियों को संस्कृत के प्रति प्रेरित किया गया। उन्होंने कहा कि अपने सारे धर्म ग्रंथ जो संस्कृत में लिखे गए हैं, उनको समझने के लिए सबसे पहले हमें संस्कृत संभाषण का अध्ययन करना आवश्यक है। भारतीय परंपरा में वेद भाषा देव भाषा संस्कृत भाषा में ही है। इसलिए हमें संस्कृत को महत्व देना चाहिए।
कार्यक्रम को आगे बढ़ते हुए धन्यवाद ज्ञापन संस्थान के प्रशिक्षक लक्ष्मी नारायण द्वारा किया गया। शांति मंत्र हेमलता ने प्रस्तुत किया। इस कार्यक्रम में उत्तर प्रदेश संस्कृत संस्थान के निदेशक विनय श्रीवास्तव, प्रशासनिक अधिकारी जगदानंद झा, डॉ. दिनेश मिश्रा, योजना प्रमुख भगवान सिंह, प्रशिक्षण प्रमुख सुधिष्ट मिश्र, समन्वयक धीरज मैथानी, दिव्य रंजन तथा राधा शर्मा मौजूद रहे।
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