लोक आस्था व विश्वास का प्रतीक है बलिया का यह स्थान
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बलिया। आस्था शब्द किसी परीक्षण का मोहताज नहीं, बल्कि मन की गहराइयों में बहता एक विश्वास की धारा है। जनपद के दयाछपरा गांव में कई बीघे में फैला एक वटवृक्ष किसी आश्चर्य से कम नहीं। चार ग्रामसभा की जमीन का लाइन ऑफ कंट्रोल माना जाने वाला यह विशाल पेड़ 'हरसू ब्रह्म बाबा' का स्थान है।
बैरिया तहसील से महज 4 किलोमीटर पश्चिम पांडेयपुर और दयाछपरा के मध्य राष्ट्रीय राज्य मार्ग-31 से सटे हरसू ब्रह्म बाबा का स्थान बिहार और उत्तर प्रदेश के लोगो का आस्था का केंद्र है। यह पेड़ कब से खड़ा है, इसके बारे में बड़े बुजुर्ग भी अनजान है। आसपास के प्रबुद्धजनों के अनुसार इस ब्रह्म स्थान से जुड़ी जो बात सामने आई। उनके अनुसार राजशाही प्रथा के समय राजा डुमरांव (बिहार) को कोई पुत्र नही था।
संतान के नाम पर एक पुत्री थी। तब उनके कुलपुरोहित हरसू पांडेय ने यज्ञ-हवन करवाया। तत्तपश्चात डुमरांव राजा को एक पुत्र की प्राप्ति हुई। पुत्र के जन्म से प्रसन्न होकर राजा ने अपने महल के बराबर में ही पुरोहित हरसू पांडेय का भी आलीशान महलनुमा आवास बनवा दिए। कालांतर में पुत्र के विवाह के पश्चात राजकुमार एक दिन जब अपनी पत्नी के साथ अपने महल के छत पर घूम रहे थे तो पत्नी ने पुरोहित का महलनुमा घर देखकर पूछा कि यह किसका महल है ?
राजकुमार ने अपनी पत्नी से सारा वृतांत बता दिया। घमंडी पत्नी को यह स्वीकार नहीं हुआ कि उसके महल के आसपास किसी और का महलनुमा आवास हो। उसने उसी समय कह दिया कि जबतक यह महल नहीं हटेगा, तबतक वह नीचे नहीं उतरेगी। पत्नी प्रेमवश राजकुमार ने राजा से जिद्द कर वो हिस्सा तुड़वा दिया, परन्तु राजा कुपित होकर सन्यास ले लिए। राजकुमार और राजकुमारी के इस तरह के व्यवहार से आहत पुरोहित हरसू पांडेय ने भी प्राण त्याग दिए।
युवराज आजीवन सन्तानहीन ही रहे और उनकी अल्पआयु में ही मृत्यु हो गई। युवराज के मृत्यु के पश्चात राजा डुमरांव के नवासे (पुत्री का लड़का) सम्राज्य का वारिस बना। तदुपरांत उसने अपने आसपास हरसू पांडेय का चारो दिशाओं रोहतास, आरा, बक्सर और बलिया के दयाछपरा में स्मृतिस्थल बनवाये। वर्तमान में दयाछपरा स्थित 'हरसू ब्रह्म बाबा' का स्थान लोगो का परम आस्था का केंद्र है। इस स्थान के वट वृक्ष के बारे में कहा जाता है कि वृक्ष से टूटी टहनी कभी सूखती नहीं, बल्कि टूटे हुए टहनी से ही नई कोपले निकलकर वृक्ष को और सशक्त कर देती है। यहां सप्ताह के सोमवार व शुक्रवार को श्रद्धालुओ की भीड़ उमड़ पड़ती है।
बलिया से रवीन्द्र तिवारी की खास रिपोर्ट
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