दर्द की आहट पर, शीतलकारी मरहम हो 'मां'
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तपतपाती धूप में
शीतल छांव की अनुभूति हो।
छलियावी दुनिया में
निश्छल प्रेम प्रतीति हो।
शीतल छांव की अनुभूति हो।
छलियावी दुनिया में
निश्छल प्रेम प्रतीति हो।
सूने उदास दृग तारकों में
चमक जगाती दीप्ति हो।
तन मन हरा कर दे जो
बिन बादल की वृष्टि हो।
दर्द की आहट पर,
शीतलकारी मरहम हो।
नींद जो न आए
लोरी गाती सरगम हो।
सच इतना सा है मां
तू है तो कमी तो नहीं है।
विंध्याचल सिंह
शिक्षक
उच्च प्राथमिक विद्यालय बेलसरा, बलिया
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