बलिया : भावुक कर देगी इस मां के समर्पण और त्याग की कहानी




Ballia News : कहते हैं कि जिंदगी हर पल आजमाती है। आखिरी लम्हों तक राहों से भटकाती है। लेकिन जिनके पास भरोसा और आशीर्वाद का संबल होता है वह हर बार उठ खड़ा होता है। आज ऐसे ही एक किरदार की बात होगी जिसने तमाम झंझावातों और चुनौतियों से लोहा लेते हुए अपनी संतानों में जिंदगी जीने का माद्दा पैदा किया।
हम बात कर रहे हैं पंदह ब्लॉक अंतर्गत ग्राम पंचायत बड़सरी के एक छोटे से पुरवा गोड़वरा निवासी ऐसे ही एक जुझारू मां पन्ना देवी की। जिन्होंने ने परिस्थितियों के आगे घुटने टेकने की बजाय उसका पूरे दमखम से सामना किया। 2009 में पति मकरध्वज यादव की असामयिक मौत के बाद उनकी दुनिया ही उजड़ गई। उस समय सबसे बड़े पुत्र अमित की उम्र नौ वर्ष थी। वहीं, दो पुत्रियों में सबसे बड़ी मधु 6 साल और निधु 3 साल की थी।
जिंदगी के स्याह सूनेपन से जूझ रही पन्ना देवी को बच्चों की परवरिश की चिंता ने उस मनहूस घड़ी को भूलने पर मजबूर कर दिया और मिनी आंगनबाड़ी कार्यकत्री की मामूली नौकरी कर उन्होंने अपने बच्चों को बेहतर तालीम दी। जिसका सुखद प्रतिफल भी मिला। बेटा सीजीएल क्वालीफाई कर आज इनकम टैक्स अधिकारी है। जबकि पुत्रियां स्नातक की पढ़ाई कर रही हैं।
अमित अपनी बात की शुरुआत करते हुए कहते हैं, 'आसमान में कितने तारे पर चांद जैसा कोई नहीं। इस धरती पर कितने चेहरे, पर मां जैसा कोई नहीं।' हम तीनों भाई-बहन तब बहुत छोटे थे, जब पिताजी छोड़ कर चले गए। उस वक्त पूरे परिवार ने हिम्मत खो दी। लगा, सब कुछ खत्म हो गया, लेकिन मां के भरोसे ने चुनौतियों से लड़ने का साहस दिया। घर की माली हालत ठीक नहीं थी। सारी जिम्मेदारी अचानक ही मां के कंधों पर आ गई।
तब मां के पास हम तीनों भाई-बहनों को पालने का कोई जरिया नहीं था। वह सारी रात रोती रहती थीं। यह सिलसिला दो वर्षों तक चलता रहा। हमारी जरूरतों की वजह से मां को मिनी आंगनबाड़ी की नौकरी करनी पड़ी। उस दरम्यान हालात इतने बुरे थे कि उसे व्यक्त करना आसान नहीं है। इन्हीं हालातों में हम धीरे-धीरे बड़े होते रहे। मां ने हमें अच्छी शिक्षा देने के लिए बहुत जतन किए। आज जब मैं मां के बूते एक अच्छे मुकाम पर पहुंच गया हूं तो लगता है कि अगर मां हमें न संभालतीं तो आज हम कहां होते। आज जब मां को खुश और चैन की नींद लेते देखता हूं, तो मन बहुत प्रसन्न होता है।
एके पाठक

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