गायत्री शाक्तिपीठ बलिया : बेईमान व्यक्ति भी, ईमानदारी का प्रशंसक होता है
गायत्री शक्तिपीठ महावीर घाट गंगा जी मार्ग बलिया
30 जनवरी 2025 गुरुवार
माघ शुक्ल पक्ष प्रतिपदा २०८१
‼ऋषि चिंतन‼
"बेईमान" व्यक्ति भी, ईमानदारी" का प्रशंसक होता है।
"बेईमानी" की गरिमा स्वीकारने तथा आदर्श के रूप से अपनाने वाले वस्तुतः वस्तु स्थिति का बारीकी से विश्लेषण नहीं कर पाते। वे बुद्धि भ्रम से ग्रसित हैं। सच तो यह है, "बेईमानी" से धन कमाया ही नहीं जा सकता। इस आड़ में कमा भी लिया जाए तो वह स्थिर नहीं रह सकता। लोग जिन गुणों से कमाते हैं, वे दूसरे ही हैं। "साहस", "सूझ-बूझ", "मधुर भाषण", "व्यवस्था," "व्यवहार कुशलता" आदि वे गुण हैं जो उपार्जन का कारण बनते हैं।
बेईमानी से अनुपयुक्त रूप से अर्जित किए गए लाभ का परिणाम स्थिर नहीं और अंततः दुःखदायी ही सिद्ध होता है। ऐसे व्यक्ति यदि किसी प्रकार राजदंड से बच भी जाएँ तो भी उन्हें अपयश, अविश्वास, घृणा, असहयोग जैसे सामाजिक और आत्म प्रताड़ना तथा आत्म ग्लानि जैसे आत्मिक कोप का भाजन अंततः बनना पड़ता है। बेईमानी से भी कमाई तभी होती है जब उस पर ईमानदारी का आवरण चढ़ा हो। किसी को ठगा तभी जा सकता है जब उसे अपनी प्रामाणिकता एवं विश्वसनीयता पर आश्वस्त कर दिया जाए।
यदि किसी को यह संदेह हो जाए कि हमें ठगने का ताना बाना बुना जा रहा है तो वह उस जाल में नहीं फँसेगा तथा दूसरे को अपनी धूर्तता का लाभ नहीं मिल सकेगा। "बेईमानी" की चाल तभी सफल होती है जब वह "ईमानदारी" के आवरण में पूरी तरह बैठ जाए-कहीं कोई किसी तरह के संदेह की गुंजायश ही न रहे। वास्तविकता प्रकट होने पर तो बेईमानी करने वाला न केवल उस समय के लिए वरन् सदा के लिए लोगों का अपने प्रति विश्वास खो बैठता है और लाभ कमाने के स्थान पर उल्टा घाटा उठाता है। रिश्वत लेते, मिलावट करते, धोखाधड़ी बरतते, सरकारी टैक्स हड़पते काला बाजारी करते पकड़े जाने वाले सरकारी दंड पाते तथा समाज में अपनी प्रतिष्ठा गँवाते आए दिन देखे जाते हैं। उनकी असलियत प्रकट होते ही हर व्यक्ति घृणा करने लगता है।
हर व्यक्ति "ईमानदार" साथी चाहता है। उसके साथ "ईमानदारी" बरती जाए वह अपेक्षा करता है। "ईमानदार नौकर", "कर्मचारी", "व्यवसायी", दुकानदार की सर्वत्र ढूँढ़ खोज होती है, बाजार में लोग उन्हीं दुकानों पर जाते हैं जिनकी प्रामाणिकता पर विश्वास होता है।नौकरी उन्हें ही मिलती है जिनकी ईमानदारी पर शक न हो। कोई भी व्यक्ति यह नहीं चाहता कि उसे धोखा दिया जाए ठगा जाए। ढूँढ़ खोज की जाए तो कोई भी "बेईमानी" का समर्थक नहीं मिलेगा। संसार में बड़े काम, बड़े व्यापार, बड़े आयोजन ईमानदारी के आधार पर ही बढ़े और सफल हुए हैं। जिसने अपनी विश्वस्तता का सिक्का दूसरों पर जमा दिया अच्छी सही खरी चीजें उचित मूल्य पर दी और व्यवहार में प्रामाणिकता सिद्ध कर दी, लोग सदा सर्वदा के लिए उसके ग्राहक, प्रशंसक एवं सहयोगी बन गए। प्रामाणिकता का भविष्य सदा से ही उज्ज्वल रहा है।
बड़े आदमी नहीं, महामानव बनें पृष्ठ-१४
पं. श्रीराम शर्मा आचार्य
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