सच वाले गुमनाम हुए हैं, झूठों का गुणगान बहुत है...
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तीन हाथ शमशान बहुत है
सच वाले गुमनाम हुए हैं,
झूठों का गुणगान बहुत है।
जिसने फूंका था बस्ती को,
कहते "उसको ज्ञान बहुत है।"
बेईमानी से खूब कमाया,
चर्चा रही, "महान बहुत है।"
शहर-शहर में महल बनाया,
तीन हाथ शमशान बहुत है।
दुखियारे का हृदय दुखाया,
होठों पर मुस्कान बहुत है।
रोग हुआ मर गया गरीबा,
कहते, "आज निदान बहुत है।"
पशुवत् होता गया आदमी,
हुआ तो अनुसंधान बहुत है।
किसे उठा दे, किसे गिरा दे,
समय होत बलवान बहुत है।
जन्म लिया तो जीना ही है,
वैसे तो व्यवधान बहुत है।
विंध्याचल सिंह
बुढ़ऊं, बलिया, उत्तर प्रदेश।
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