Special Story on Teacher's Day : बलिया में एक ऐसा गुरुकुल, जहां आज भी जिन्दा हैं गुरु-शिष्य की सनातनी परंपरा
बलिया : पांच सितंबर यानि आज देशभर में शिक्षक दिवस मनाया जा रहा है। आज का दिन गुरुओं को समर्पित होता है। 'गु' यानी अंधकार या अज्ञान और 'रु' का मतलब, प्रकाश या ज्ञान से है। यानी, जो व्यक्ति शिष्य को अज्ञान के अंधकार से ज्ञान के प्रकाश की ओर ले जाता है, वह गुरु है। प्राचीन काल में वैश्विक शिक्षा का केंद्र रहे भारतवर्ष के गौरवशाली अतीत में गुरु सदैव आदरणीय रहे हैं। गुरु के सम्मान में ‘गुरु पूर्णिमा’ मनाने की परंपरा हजारों वर्षों से प्रचलित है। शिक्षार्थी के जीवन में उच्च चरित्र का निर्माण करने वाले कई महान् आचार्यों का वर्णन हमारे धर्म ग्रंथों में मिलता है। मसलन महान ऋषियों-मुनियों की भारतीय परंपरा की गुरुकुल पद्धति वाली शिक्षा व्यवस्था ने विश्व में अपनी कीर्ति पताका लहराई थी।
ज्ञान, विज्ञान व संस्कारों का भूखंड रहे भारतवर्ष की शिक्षा व्यवस्था को संरक्षित, पल्लवित और पुष्पित करने का काम महर्षि भृगु वैदिक गुरुकुलम् गंगापुर (रामगढ़) बलिया कर रहा है। एक ऐसा गुरुकुल, जहां आज भी गुरु-शिष्य की सनातनी परंपरा जिंदा है। वैदिक शिक्षा की जीवंत परंपरा का अनूठा मिशाल पेश करने वाले इस संस्थान में गुरु अपने शिष्यों को नि:शुल्क शिक्षा देकर उनका जीवन संवार रहे हैं। वहीं शिष्य, गुरु दक्षिणा के रूप में इस वैदिक परंपरा और शिक्षा को आगे बढ़ाने का संकल्प लेते हैं।
ब्रह्म मुहूर्त में शुरू होती है दिनचर्या
पश्चिमी सभ्यता के अंधानुकरण के युग में भी यहां सुबह चार बजे से बटुकों की शिक्षा का दौर शुरू हो जाता है। इसमें ज्योतिष, वैदिक शिक्षा, पूजा पाठ, कर्मकांड, धर्म और संस्कृति, साहित्य, व्याकरण सहित आधुनिक विषय का ज्ञान दिया जाता है। शुद्ध सात्विक भोजन और प्राकृतिक, धार्मिक वातावरण के बीच सात साल के कोर्स में ये बटुक यहां से सनातनी धर्म और वैदिक ज्ञान का सागर अपने मस्तिष्क रूपी झोले में भरकर उसे आगे फैलाने के लिए निकलेंगे।
सनातन परंपरा का पोषक बनाना उद्देश्य
संचालक पंडित मोहित पाठक ने बताया कि आचार्य वशिष्ठ और संदीपनी से लेकर आर्यभट्ट और वराहमिहिर जैसे शिक्षक की पुरातन परंपरा का निर्वहन करते हुए सनातन संस्कृति को सुदृढ़ करना उनका मुख्य उद्देश्य है। विद्यार्थियों को प्राकृतिक वातावरण में एक ऐसी शिक्षा प्रदान की जाती है, जिससे उनके अंदर भाईचारा, मानवता, प्रेम और अनुशासन का समावेश हो सकें। यही नहीं व्यक्तित्व विकास के लिए समूह चर्चा और स्व-शिक्षण के साथ योग, ध्यान, मंत्र जप आदि गतिविधियां संपादित कराई जाती हैं। इससे सकारात्मकता और मन की शांति तो मिलती ही है साथ में आत्मविश्वास और बुद्धिमत्ता का विकास भी होता है। बताया कि हमारा सनातन धर्म हमें यही शिक्षा देता है कि हम ज्ञान अर्जित करें और फिर उसे दूसरों में बांटे। इससे शिक्षा में ठहराव नहीं आता।
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