हिंदी दिवस की पूर्व संध्या पर बलिया के कवियों ने पढ़ी एक से बढ़कर एक रचनाएं
बलिया : हिंदी दिवस की पूर्व संध्या पर साहित्य चेतना समाज बलिया इकाई के तत्वावधान में मोती नगर में साहित्यिक व कवि गोष्ठी की गई, जिसकी शुरुआत मां सरस्वती की वाणी वंदना से हुआ। अध्यक्षता करते हुए रिटायर्ड एसडीएम केशव कुमार सिंह ने कहा कि हिंदी हमारे रोम- रोम में बसी है। यह अत्यंत सहज एवं सरल भाषा है। इसे राष्ट्रभाषा का दर्जा आतिशीघ्र मिलना चाहिए। इससे हमारे देश की पहचान है।
डॉ शशी प्रेमदेव ने जीवन के आपाधापी में जिंदगी को रेखांकित करते हुए सुनाया जिंदगी गद्य सी बेसुरी ही सही, गीत सा हम उसे गुनगुनाते रहे। कार्यक्रम संयोजक डॉ नवचंद्र तिवारी ने हिंदी की मधुरता व व्यापकता का गुणगान करते हुए सुनाया 'सूरत से आसाम है हिंदी, घूमो चारों धाम है हिंदी। सबको पिरोये एक सूत्र में, सुबह से लेकर शाम है हिंदी... से वाह-वाही लूटी। डॉ कादंबिनी सिंह की रचना 'आया नहीं जाता तेरी चौखट पे इसलिए, अच्छा नहीं के हम तेरे पहलू में शब करें' ने जबरदस्त तालियां बटोरी।
युवा कवि श्वेतांक सिंह ने हिंदी की दुर्दशा पर 'हिंदी का दुख उस रोटी का दुख है, जो पिज़्ज़ा मिलते ही कूड़ेदान में फेंक दी जाती है' कहकर हिंदी के प्रति वर्तमान कथित प्रयास पर तंज कसा। डॉ फतेहचंद बेचैन ने अपने चिर -परिचित अंदाज में 'हिंदी हिंद की भाषा है इसका हमें विकास चाहिए' सुना कर श्रोताओं को मंत्र मुग्ध किया। संगीत प्रशिक्षक डॉ अरविंद उपाध्याय ने जब लय से आबद्ध अपनी रचना सुनाया तो लोग रसरक्ति के सागर में गोते लगाने लगे। प्रेमचंद गुप्ता ने हिंदी की महत्ता पर विस्तार से प्रकाश डाला। इस अवसर पर सरोज सिंह, मिताक्षरा, गोवर्धन भोजपुरी, नंद जी नंदा, शिवम, प्रांजल आदि थे। संचालन नवचद्र तिवारी ने किया। आभार डॉ आदित्य कुमार ने किया।
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