ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ Mangal Pandey ने फूंका था विद्रोह का बिगुल, जानें तय तारीख से पहले अंग्रेजों ने क्यों दी फांसी ?




भारतीय इतिहास में मंगल पांडेय का नाम स्वर्ण अक्षरों में दर्ज है। वह पहले वीर सेनानी थे, जिन्होंने ब्रिटिश हुकूमत के अत्याचारों के खिलाफ आवाज उठाई। उनके क्रांतिकारी विचारों और गतिविधियों से अंग्रेज इतना डर गए कि तय तारीख से पहले ही 8 अप्रैल 1857 को उन्हें फांसी दे दी।
Mangal Pandey Balidan Diwas: 'मिटे ना जो मिटाने से कहानी उसको कहते हैं, वतन के काम जो आए जवानी उसको कहते हैं।' इस पंक्ति को चरितार्थ करने वाले स्वतंत्रता संग्राम के प्रथम अग्रदूत मंगल पांडेय ने फांसी पर चढ़कर अंग्रेजों को एहसास करा दिया कि भारत माता के लाल अब जाग चुके हैं, अब अंग्रेजों की खैर नहीं है। मंगल पांडेय की शहादत दिवस पर जनपद के विभिन्न क्षेत्रों में 8 अप्रैल मंगलवार को कार्यक्रम आयोजित होंगे।
महान क्रांतिकारी मंगल पांडेय का जन्म 30 जनवरी 1831 को बलिया जनपद के नगवा गांव के एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। मंगल पांडेय सेना में भर्ती हुए, उस समय सेना में धर्म के अनुसार वेशभूषा में रहने की छूट थी। हिंदू सिपाहियों के लिए माथे पर तिलक लगाना और मुसलमान सिपाहियों को दाढ़ी रखना आम बात थी। उस समय सेना में अंग्रेजों की ओर से सैनिकों को ईसाई बनाने का कुचक्र चल रहा था।
पश्चिम बंगाल के बैरकपुर में एक फैक्ट्री थी, जहां कारतूस बनाए जाते थे। उस फैक्ट्री के अधिकांश कर्मचारी दलित समुदाय के थे। एक दिन प्यास लगने पर फैक्ट्री के एक कर्मचारी ने सैनिक मंगल पांडेय से एक लोटा पानी मांगा। मंगल पांडेय ने उस कर्मचारी को यह कह कर पानी देने से मना कर दिया कि वह अछूत है। यह बात उस कर्मचारी को चूभ गई। उसने कटाक्ष करते हुए मंगल पांडेय से कहा कि उस समय में आपका धर्म कहा रह जाता है, जब बंदूक में कारतूस डालने से पहले उसे दांत से तोड़ते है। उस कारतूस पर गाय व सूअर की चर्बी लगी होती है।
वह दलित कर्मचारी माता दिन था, जिसने भारतीय सैनिकों की आंखें खोल दी। इसके बाद 29 मार्च 1857 को मंगल पांडेय ने अंग्रेजों के खिलाफ बगावत का बिगुल फूंक दिया और परेड ग्राउंड में ही अंग्रेज अफसर बाॅव और सार्जेंट मेजर ह्यूसन को मौत की घाट उतार दिया। मंगल पांडेय सभी सिपाहियों को चर्बी की बात बताते हुए अंग्रेजों से बदला लेने की बात कही, तभी अंग्रेज अफसर कर्नल ह्वीलर घटना स्थल पर पहुंचा और सिपाहियों से मंगल पांडेय को गिरफ्तार करने का आदेश दिया, लेकिन एक भी सैनिक मंगल पांडेय को गिरफ्तार करने के लिए आगे नहीं आए। यह घटना पूरे देश में तेजी से फैलने गई।
सिपाहियों में अंग्रेज अफसर के विरुद्ध बगावत का विद्रोह सुलग रहा था। मंगल पांडेय को गिरफ्तार कर लिया गया। फौजी अदालत में उन पर मुकदमा चला और मंगल पांडेय ने कहा कि 'मैंने जो कुछ भी किया सोच समझकर राष्ट्र व धर्म के लिए किया।' इसके बाद उन्हें फांसी की सजा सुनाई गई। बैरकपुर छावनी के परेड मैदान में फांसी का मंच बनाया गया। 7 अप्रैल की सुबह फांसी दी जानी थी, परंतु बैरकपुर के जल्लाद मंगल पांडेय को फांसी देने से मना कर दिया। अंत में कोलकाता से जल्लाद बुलाए गए। अंग्रेज अफसर जनरल हियर्सी ने 7 अप्रैल को निर्देश जारी किया कि 8 अप्रैल 1857 को सुबह 5:30 बजे ब्रिगेड परेड के मैदान में 34वीं देसी पैदल सेना के 19वीं रेजीमेंट नेटिव इंफैंक्ट्री की पांचवी कंपनी के 1446 नंबर के सिपाही मंगल पांडेय को फांसी दी जाएगी। 8 अप्रैल को प्रातः 5:30 बजे उन्हें फांसी पर झूला दिया गया। सन् 1984 में मंगल पांडेय के बलिदान के सम्मान में सरकार ने डाक टिकट जारी किया था. स्वतंत्रता संग्राम के प्रथम शहीद मंगल पांडेय को जिस ऑर्डर में सैनिक अदालत ने फांसी की सजा सुनाई थी, वह जबलपुर के हाईकोर्ट म्यूजियम में आज भी सहेज कर रखा गया है.
नगवा को झेलनी पड़ी थी अंग्रेजों की प्रताड़ना
मंगल पांडेय के विद्रोह के बाद अंग्रेजी फौज की प्रताड़ना नगवा गांव के लोगों को झेलनी पड़ी। नगवा गांव के बुजुर्गों एवं जानकार लोगों का कहना है कि मंगल पांडेय के फांसी के बाद गांव के लोगों को तंग किया जाने लगा। कुछ लोग गांव छोड़कर जनपद के पटखौली, शेर, सहतवार, खानपुर, डुमरिया, गोपाल पांडेय के टोला तथा गाजीपुर के गोंड़उर आदि गांव में जा बसे। कश्यप गोत्री ब्राह्मण परिवार मंगल पांडेय के ही वंशज हैं। ये लोग जहां भी बसे हैं आदि ब्रह्म बाबा की पूजन-अर्चन के बदौलत अपनी पुरातन पहचान बनाए हुए हैं।


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