चंद्रशेखर यूं ही नहीं कहलाये 'लास्ट आइकॉन ऑफ इंडियन पॉलिटिक्स'

चंद्रशेखर यूं ही नहीं कहलाये 'लास्ट आइकॉन ऑफ इंडियन पॉलिटिक्स'

क्या खास है आज? क्यूँ आज का दिन नम कर रहा है इन आंखों को ? क्यूँ सिने की कसक कुछ याद करके रोता भी है और गर्व से मदमाता भी है? क्यूँ याद आती है सजदे में उस शख्स की वो दाढ़ी वाली तस्वीर, जो युवाओं को कुछ कर गुजर जाने का हौसला देती है। क्या है इस बागी बलिया की मिट्टी में? क्यूँ है बागी कि महक हमारे वजूद में ? क्यूँ इस मिट्टी के सपूत ने राजधानी दिल्ली से नहीं, बल्कि गांव के कुटिया से संचालित होने वाले देश की कल्पना की थी? क्यूँ आज इस भूमंडलीकरण में उस शख्स की प्रासंगिकता और बढ़ जाती है ? क्यूँ हरिबंश जी ने उस महान विभूति को भारतीय राजनीति का 'लास्ट आइकॉन' कहा? क्यूँ याद करूँ उस युवा तुर्क को? 

हां आज उसी परमादरणीय बागी बलिया के अमर सपूत, युवा तुर्क, भारतीय राजनीति के लास्ट आइकाॅन, जननायक चंद्रशेखर जी की क्रांतिकारी मिट्टी पर अवतरण का दिन है। हर क्यूँ, क्या, कैसे का जवाब शोध कि जिजीविषा है। हां वही चन्द्रशेखर, जिन्होंने अपने जीवनकाल में अपने उसूलों से समझौता नहीं किया और वैसे पदों को ठोकर मार दिया, जिसके लिए आज के राजनयिक हद से गुजर जायें। वहीं, चन्द्रशेखर जिन्होंने अपने नाम से अपना सरनेम "सिंह" हटाकर प्राचीन क्षत्रिय परम्परा को स्थापित किया कि जन्म से कोई सिंह नहीं होता, बल्कि कर्म से होता है। भारतीयता का वह सामान्य सा प्रतीक धोती-कुर्ता पहना और यह साबित किया कि भारतीयता पहले है, बाद में कुछ और।

कभी भी लिखित भाषण को नही पढ़ा। मात्र चार महीने की अल्पमत की सरकार में राम जन्मभूमि बाबरी मस्जिद विवाद को सुलझाने के लिए राम मंदिर बनाने का गम्भीर प्रयास किया, जिसको सफल नहीं होने देने के लिए उनकी सरकार से समर्थन वापस लिया गया। पहले राजीव गांधी ने चन्द्रशेखर सरकार से समर्थन वापसी के लिए धमकी दी, पर चन्द्रशेखर जी धमकी से कहां डरने वाले थे। बिगुल के तान पर नये मानदंडों को राजनीति के गलियारे में स्थापित कर गये और कहा कि “एवरेस्ट फतह की जाती है न कि वहां आशियाना बनाया जाता है।”

फिर उनसे प्रधानमंत्री बने रहने के लिए विनती की गई, परन्तु चन्द्रशेखर एकबारगी ना कह देने पर कहां मानने वाले थे। यदि चंद्रशेखर जी ऐसा कर देते तो वह फिर चंद्रशेखर क्या कहलाते और न ही उन्हें आज 'लास्ट आइकॉन ऑफ इंडियन पॉलिटिक्स' कहा जाता। न ही मैं आज इतनी श्रद्धा से नतमस्तक लिख पाता और न ही आप इस लिखे को पढ़ने का जहमत ही उठाते। उस धीर, गंभीर विचारवादी फौलादी शख्स ने कभी सांसद, मंत्री और प्रधानमंत्री बनने के लिए किसी के दर पर दस्तक नहीं दिया। आज बहुत मिल जायेंगे, जो उनके राजनीतिक ककहरे से ही अपनी शुरूआत कर दलगत राजनीति की बिसात में खुद को आजमा रहे हैं। उस समय इनके विचारों के विरोध का आलम यह रहा कि उस दिव्यात्मा से डरकर उन पर ही आरोप लगा बैठे कुछ स्वार्थी लोगों को युगपुरुष चंद्रशेखर जी द्वारा सदन में ही कही गईं ये पंक्तियां आज भी बहुत कुछ बयां करतीं हैं।

 चमन को सीचने में पत्तियां कुछ झड़ गई होंगी।
 यही इल्जाम है मुझ पर चमन से बेवफाई का।।
 मसल डाला जिन्होंने कलियों को खुद अपने हाथो से।
 वे दावा कर रहे चमन की रहनुमाई का।।
            
विपरीत परिस्थितियों में साहस और विवेक पूर्ण ढंग से देश को नेतृत्व प्रदान करने के लिए आज देवभूमि से मैं उनकी आत्मा की शांति के निमित्त परमपिता से कामना करता हूँ। आज 17 अप्रैल को 'विशुद्ध भारतीयता की प्रतिमूर्ति' चंद्रशेखर जी की जयंती पर उनके चरणों में भावभीनी श्रद्धांजलि और कोटि कोटि नमनतम् नमन्।

डॉ. मनीष कुमार सिंह

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